Bigg Boss में”टाइम गॉड” का टास्क एक बार फिर घर के माहौल को गरमाने में सफल रहा। अविनाश मिश्रा टाइम गॉड तो बन गए, लेकिन इस टास्क के दौरान घरवालों की हिपोक्रेसी, दोगले व्यवहार और मास्टरमाइंड रजत की चालों ने पूरे खेल का रुख बदल दिया। आइए, इस घटना का गहराई से विश्लेषण करते हैं।
अविनाश मिश्रा: मेहनत या मास्टरमाइंड की मेहरबानी?
Avinash ने लाइव टास्क के दौरान अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे। उन्होंने कहा था कि इस बार वे फेयर प्ले करेंगे और किसी की दया पर टाइम गॉड नहीं बनेंगे। उन्होंने कहा था, “मुझे इस बार दान में टाइम गॉड की उपाधि नहीं चाहिए। मैं अपनी मेहनत से जीतूंगा और सबको दिखाऊंगा कि मैं क्या कर सकता हूं।”
लेकिन जब रजत ने अपने मास्टरमाइंड प्लान से Chum का पानी गिराकर अविनाश को टाइम गॉड बना दिया, तो सवाल खड़े हो गए। क्या अविनाश वाकई इस जीत के हकदार थे? या यह उपाधि उन्हें “दान” में मिली? यह विरोधाभास खुद अविनाश की छवि पर सवाल खड़े करता है। जब उन्होंने कहा था कि वे किसी के सहारे जीत नहीं चाहते, तो फिर उन्होंने यह उपाधि क्यों स्वीकार की?
हिपोक्रेसी: सही-गलत का दोहरा मापदंड
इस टास्क ने Bigg Boss घरवालों के दोगले व्यवहार को उजागर किया। जब किसी अपने के साथ गलत हुआ, तो पूरा ग्रुप उनके समर्थन में खड़ा हो गया। लेकिन जब गलत किसी दूसरे के साथ हुआ, तो सबने चुप्पी साध ली।
पहले राउंड में जब चाहत ने रजत का पानी गिराया, तो Rajat के ग्रुप ने इसे “गुंडागर्दी” कहा। लेकिन दूसरे राउंड में जब रजत ने चुम का पानी गिराया और अविनाश को टाइम गॉड बनाया, तो यही लोग चुप हो गए। इसी तरह, जब Vivian , Eisha और Kashish रजत के खिलाफ बोले, तो उनके ग्रुप ने भी उन्हें समर्थन नहीं दिया।
यह स्पष्ट करता है कि घर के नियम और सही-गलत का फैसला सिर्फ अपनी सुविधा के हिसाब से किया जा रहा है। इस हिपोक्रेसी ने घर के माहौल को और भी ज्यादा विषाक्त बना दिया है।
रजत: मास्टरमाइंड या जोड़तोड़ का खिलाड़ी?
इस पूरे टास्क का असली खेल रजत के हाथ में था। उनकी रणनीति इतनी सटीक थी कि उन्होंने न सिर्फ अपने फायदे के लिए खेल को मोड़ा, बल्कि अपनी टीम को भी मजबूत किया।
रजत ने चतुराई से चुम का पानी गिराकर अविनाश को टाइम गॉड बना दिया। उन्होंने यह कदम सोच-समझकर उठाया, क्योंकि उन्हें पता था कि अविनाश को जिताने से वे एक और समर्थक जोड़ लेंगे। हालांकि, उनकी इस चाल पर सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या यह खेल भावना के खिलाफ नहीं था?
इसके बावजूद, रजत की रणनीतियों का एक खास पहलू यह है कि वे हमेशा अपने ग्रुप को प्राथमिकता देते हैं। वे चाहे जैसे भी खेलें, लेकिन अंत में उनका नतीजा उनके पक्ष में ही आता है।
क्या सही और क्या गलत?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही है कि सही और गलत का मापदंड क्या है? क्या सही-गलत का फैसला ग्रुप की सहूलियत पर होना चाहिए?
अगर Bigg Boss घर के सभी सदस्य शुरुआत से ही गलत के खिलाफ खड़े हो जाते, तो शायद यह हिपोक्रेसी इतनी बढ़ती नहीं। लेकिन यहां हर कोई अपनी बारी का इंतजार कर रहा है। यही वजह है कि गलतियां बार-बार दोहराई जा रही हैं।
अविनाश का दोहरापन
अविनाश की छवि इस टास्क में बहुत प्रभावित हुई। उन्होंने पहले खुद को निष्पक्ष और ईमानदार बताया, लेकिन अंत में उन्होंने वही उपाधि स्वीकार की जिसे उन्होंने दान में नहीं लेना कहा था। यह उनके व्यक्तित्व को कमजोर दिखाता है।
क्या सिखाता है यह टास्क?
यह टास्क सिर्फ एक खेल नहीं था, बल्कि यह इस बात का प्रतिबिंब है कि इंसान अपने फायदे के लिए सही-गलत के पैमाने कैसे बदल सकता है। यह दिखाता है कि जब तक हम गलत के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे, तब तक यह गलतियां बार-बार होंगी।
क्या हो सकता था बेहतर?
- फेयर प्ले: अगर सभी सदस्य सही-गलत का फैसला निष्पक्षता से करते, तो यह Bigg Boss टास्क ज्यादा दिलचस्प और न्यायसंगत होता।
- टीम वर्क: हर किसी ने अपनी-अपनी टीम को प्राथमिकता दी। लेकिन अगर वे पूरे खेल के प्रति समर्पित रहते, तो यह शो का स्तर और ऊंचा होता।
- नियमों का पालन: घरवालों को टास्क के नियमों का पालन करना चाहिए था, बजाय इसके कि वे अपने हिसाब से खेल को मोड़ते।
आपकी राय?
अविनाश का टाइम गॉड बनना सही था या गलत? क्या रजत का मास्टरमाइंड प्लान खेल भावना के खिलाफ था? इन सवालों पर आपकी क्या राय है? हमें कमेंट करके जरूर बताएं।
निष्कर्ष
Bigg Boss“टाइम गॉड” का यह टास्क सिर्फ एक जीत-हार का मामला नहीं था। यह इंसानी स्वभाव, रणनीति और हिपोक्रेसी की झलक देता है। यह दिखाता है कि लोग अपने फायदे के लिए कैसे सही-गलत के मापदंड बदल सकते हैं। अब देखना यह है कि आगे आने वाले टास्क में क्या यही दोगलापन और चालाकी जारी रहती है या घरवाले इससे कुछ सीखते हैं।
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