Basant Panchami भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसे माँ सरस्वती के पूजन के लिए समर्पित किया गया है। यह पर्व विद्या, संगीत, कला और संस्कृति के प्रति आस्था को दर्शाता है। इस दिन माँ सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है ताकि वे हमें ज्ञान, बुद्धि और विवेक प्रदान करें। इस त्योहार का महत्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत अधिक है।
Basant Panchami को श्री पंचमी या सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन विशेष रूप से विद्यार्थियों, कलाकारों, लेखकों और संगीतकारों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पर्व पर पीले वस्त्र धारण करने, पीले रंग के व्यंजन बनाने और माँ सरस्वती की पूजा करने की परंपरा है। बसंत पंचमी को वसंत ऋतु का स्वागत करने का भी पर्व माना जाता है, क्योंकि यह मौसम प्रकृति के नवजीवन का संकेत देता है।

Basant Panchami 2025 कब मनाई जाएगी
वर्ष 2025 में Basant Panchami का पर्व 2 फरवरी, रविवार को मनाया जाएगा।
- पंचमी तिथि प्रारंभ: 2 फरवरी 2025, सुबह 09:14 बजे
- पंचमी तिथि समाप्त: 3 फरवरी 2025, सुबह 06:32 बजे
इस दिन विद्या और कला की देवी माँ सरस्वती की विशेष पूजा की जाती है, ताकि व्यक्ति के जीवन में ज्ञान, बुद्धि, संगीत, कला और सृजनात्मकता का विकास हो।
बसंत पंचमी का महत्त्व
1. धार्मिक महत्त्व
Basant Panchami के दिन देवी सरस्वती की पूजा करने का विशेष विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रचने के दौरान जब चारों ओर नीरवता देखी, तब उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़ककर एक अद्भुत शक्ति का आवाहन किया, जिससे माँ सरस्वती प्रकट हुईं। उन्होंने अपने वीणा के स्वर से समस्त सृष्टि में ध्वनि, ज्ञान और संगीत का संचार किया। तभी से यह दिन माँ सरस्वती के पूजन के रूप में मनाया जाने लगा।
2. शैक्षिक और बौद्धिक महत्त्व
यह दिन विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए अत्यंत शुभ होता है। कई विद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में इस दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखवाने की परंपरा भी है, जिसे “विद्यारंभ संस्कार” कहते हैं।
3. सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व
भारत के विभिन्न हिस्सों में यह पर्व अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में इसे बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। बंगाल में इस दिन माँ सरस्वती की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं और भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है।

सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त
- पूजा का शुभ समय: सुबह 07:08 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक
- मध्यान्ह क्षण: दोपहर 12:34 बजे
इस अवधि में माँ सरस्वती की पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
Basant Panchami पर विशेष परंपराए
1. माँ सरस्वती की पूजा
- माँ सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को पीले वस्त्रों से सुसज्जित करें।
- पूजा में पीले फूल, अक्षत, हल्दी, चंदन और सफेद मिठाई अर्पित करें।
- सरस्वती वंदना करें: “या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥” - विद्यार्थियों को इस दिन अपनी पुस्तकों और लेखनी की पूजा करनी चाहिए।
- प्रसाद वितरण करें और ज्ञान प्राप्ति का संकल्प लें।
2. विद्यारंभ संस्कार
इस दिन बच्चों को अक्षर लेखन सिखाने की परंपरा है। माना जाता है कि इस दिन शुरू किया गया अध्ययन विशेष रूप से सफल होता है।
3. पीले वस्त्र धारण करना
Basant Panchami का रंग पीला है, जो ज्ञान, ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं और हल्दी से युक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं।
4. पतंगबाजी का आयोजन
उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब और हरियाणा में इस दिन पतंगबाजी की जाती है। पतंग उड़ाना आनंद और उत्साह का प्रतीक माना जाता है।
5. भोग और प्रसाद
इस दिन पीले भोजन जैसे केसरिया भात, बेसन के लड्डू, खिचड़ी और हल्दी वाला दूध प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

बसंत पंचमी और वसंत ऋतु
Basant Panchami केवल माँ सरस्वती की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। इस समय खेतों में सरसों के पीले फूल लहराते हैं, आम के पेड़ों पर बौर आते हैं और प्रकृति नवजीवन से भर उठती है।
बसंत पंचमी का आध्यात्मिक संदेश
यह पर्व हमें आलस्य और अज्ञान को त्यागकर ज्ञान, कला और संगीत के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। माँ सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हमें सत्य, धर्म और शिक्षा के मार्ग पर चलना चाहिए।
Basant Panchami भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह न केवल माँ सरस्वती की पूजा का दिन है, बल्कि प्रकृति के नवजीवन का उत्सव भी है। इस दिन हम अपने जीवन में ज्ञान, संगीत, कला और संस्कृति को अपनाने का संकल्प लें और माँ सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करें।
“ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः!”
आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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